आजु हो निसान बाजै वसुदेव राइकै।
मथुरा के नरनारि उठे, सुख पाइ कै।।
अमर बिमान सब कहै हरषाइ कै।
फूले मात पिता दोऊ आनँद बढाइ कै।।
कस कौ भँडार सब देत है लुटाइ कै।
धेनु जे सँकल्प राखी लई ते गनाइ कै।।
ताँबे, रूपे सोने सजि राखी वै बनाइ कै।
तिलक विप्रनि बंदि, दई वै दिवाइ कै।।
मागध मगल जन लेत, मन भाइ कै।
अष्ट सिद्धि नवो निद्धि आगे ठाढ़ी आइ कै।।
सब पुर नारि आई मगलनि गाइ कै।
अंबर भूषन दए उन्है पहिराइ कै।।
अखिल भूवन जन कामना पुराइ कै।
बहु पुरजन धन देत है लुटाइ कै।।
'सूर' जन दीन द्वारै ठाढ़ौ भयौ आइ कै।
कछु कृपा करि दीजै मोहूँ की दिवाइ कै।।3092।।