हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: नवनवतितम अध्याय: श्लोक 20-28 का हिन्दी अनुवादद्वारकावासी वीरों ने वहाँ पारिजात वृक्ष के प्रभाव से एक-दूसरे के देह-सम्बन्ध को अमानुष (दिव्य) देखा, इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। हर्ष में भरे हुए वे यादव शिरोमणि वीर उन भगवान गोविन्द की स्तुति करने लगे। उनकी स्तुति सुनते हुए। वे श्रीमान भगवान विश्वकर्मा के बनाये हुए उस गृह में प्रविष्ट हुए। तदनन्तर अमेय आत्मबल से सम्पन्न शत्रु विजयी भगवान अच्युत ने वृष्णिवंशियों को साथ लेकर शिखर सहित मणिपर्वत को अन्त:पुर में रखा तथा उस दिव्य, पूज्य एवं पूजित वृक्षप्रवर पारिजात को भी शान्तभाव से अभीष्ट स्थान में स्थापित कर दिया। तत्पश्चात शत्रुवीरों का संहार करने वाले केशव ने समस्त भाई-बन्धुओं की आज्ञा ले उन सब स्त्रियों का समादर किया, जो नरकासुर द्वारा हरकर लायी गयी थीं। दिव्य वस्त्र, दिव्य आभूषण, दासीगण, धन की राशि, चन्द्रकिरणों के समान श्वेत हीरकहार तथा मान प्रभापुंज से प्रकाशित मणियों द्वारा श्रीहरि ने उनका सत्कार किया। उनसे भी पहले वसुदेव जी, देवकी, रोहिणी, रेवती तथा उग्रसेन ने भी उन सबका समादर किया था। उस समय सौभाग्य की दृष्टि से सत्यभामा सभी स्त्रियों में श्रेष्ठ मानी गयी; परंतु कुटुम्ब की स्वामिनी तो भीष्मकनन्दिनी महारानी रुक्मिणी ही थीं। श्रीकृष्ण ने उन सब रानियों को यथायोग्य महल, अटारी, प्रासादशिखर, गृह तथा बहुत-से उपहार अर्पित किये। इस प्रकार श्रीमहाभारत खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में द्वारकाप्रवेशविषयक निन्यानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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