हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 46 श्लोक 40-60

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षट्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 40-60 का हिन्दी अनुवाद

उसके नेत्र–प्रांत मानो हलकी नोक से छिल गए थे, वह सागरगामिनी क्षुब्ध हो उठी थी, वह कुटिला एवं मतवाली स्त्री के समान खुली सड़क पर चल रही थी। ऊंचे–नीचे प्रवाह ही उसकी स्खलित गति के सूचक थे। वह उस विपरीत मार्ग पर लाई गई थी, जिस ओर वृंदावन सुशोभित होता था। यमुना नदी वृंदावन के बीच से लाई गई थी। जल में निवास करने वाले पक्षी उसके साथ–साथ बोलते हुए आ रहे थे। उन पक्षियों के शब्दों में मानो वह नदी ही जोर–जोर से रो रही थी। वह नदी जब वृंदावन को लांघ गई, तब स्त्री रूप में प्रकट हो बलराम जी से बोली- 'नाथ! प्रसन्न होइए। मैं आपके इस विपरीत कर्म से बहुत डर गई हूँ। मेरा यह रूप और जल विपरीत हो गया है।

रोहिणीनंदन! महाबाहो! आपने इस तरह मुझे खींचकर नदियों के बीच में "असती" बना दिया। मुझे मेरे मार्ग से भ्रष्ट कर दिया। जब में समुद्र के निकट जाऊंगी, उस समय मेरी सौतें वेग से गर्वित होकर अपने फेनरूपी हासों द्वारा मेरी हंसी उड़ाएंगी, मुझे जल के द्वारा विपरीत गामिनी बताएंगी। श्रीकृष्ण के बड़े भैया वीर सुरश्रेष्ठ! आप मुझ पर कृपा करें। मैं आपसे याचना करती हूं, आप मुझ पर सदा प्रसन्नचित्त रहें। हलायुध! मैं आपके कर्षणयुध (हल) से यहाँ तक खींच लाई गई हूँ। आप अपने इस रोष को लौटा लें। मैं आपके चरणों में मस्तक रखती हूँ। महाबाहो! मुझे राह बताइये, मैं कहा जाऊं?'

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! समुद्र–पत्नी यमुना को प्रेम से नतमस्तक हुई देख मधु के मद से क्लान्त हुए बलराम जी ने यह बात कही- 'शुभे! प्रियदर्शने! मैंने हल के द्वारा तुम्हारे जाने के लिए मार्ग बता दिया है, तुम इस सारे प्रदेश को अपना जल देकर आप्लावित कर दो। सुभ्रु! सागरगामिनी महाभागे! यह तुम्हारे लिए संदेश कहा गया है। शांति धारण करो और जहाँ तुम्हारी मौज हो चली जाओ। जब तक यह संसार रहेगा, तब तक मेरा यह सुयश भी बना रहेगा,' यमुना जी का आकर्षण हुआ देखकर समस्त व्रजवासियों ने उस समय साधु! साधु!! (वाह–वाह) कहकर बलराम जी को प्रमाण किया।

महाभागा यमुना तथा उन समस्त व्रजवासियों को विदा करके प्रहार करने वालों में श्रेष्ठ रोहिणीपुत्र बलराम जी मन-ही-मन कुछ सोचकर पुन: शीघ्र ही मथुरा को प्रस्थान किया। मथुरा पहुँचकर बलराम ने पृथ्वी के सारभूत अविनाशी मधुसूदन को भवन के भीतर शय्या पर करवट बदलते देखा। तब उसी राहगीर के वेष में बलराम ने नूतन वन–माला से विभूषित सुंदर वक्ष:स्थल द्वारा भगवान जनार्दन का आलिंगन किया लांगलधारी बलराम को शीघ्रतापूर्वक आते देख गोविंद ने सहसा उठकर उनके लिए उत्तम आसन दिया। जब बलराम जी बैठ गए, तब श्रीकृष्ण ने उनसे व्रज की कुशल पूछी। समस्त बांधवों तथा गौओं के विषय में जिज्ञासा की। तब बलराम ने उत्तम भाषण करने वाले भाई श्रीकृष्ण को इस प्रकार उत्तर दिया– 'श्रीकृष्ण! तुम जिनकी कुशल चाहते हो, उनकी सर्वत्र कुशल है।' तदनन्तर वसुदेव जी के आगे बलराम और श्रीकृष्ण विचित्र अर्थ से युक्त पवित्र एवं पुरातन कथाएं होने लगीं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अंतर्गत विष्णु पर्व में बलराम जी के द्वारा यमुना जी का आकर्षण विषयक छियालीसवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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