हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 42 श्लोक 27-43

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्विचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 27-43 का हिन्दी अनुवाद

मेरी आज्ञा मानकर समस्त भूपाल पर्वतीय स्थानों में खड़े रहे और जहां–जहाँ अवकाश मिल जाए, वहां–वहाँ से शीघ्र ही पर्वत पर चढ़ जाएं। मद्रराज शल्य, कलिंगराज श्रुतायु, चेकितान, बाह्लिक, काश्मीर राज गोनर्द, करूषराज दन्तवक्त्र, किन्नरराज द्रुम तथा पर्वतीय प्रदेश के योद्धा– ये सब लोग इस पर्वत के पश्चिम भाग पर शीघ्र ही चढ़ाई कर दें। पुरुवंशीय वेणुदारि, विदर्भदेशीय सोमक, भोजों के अधिपति राजा द्रुपद, अवन्ति के दोनों राजकुमार विन्द और अनुविन्द, पराक्रमी दन्तवक्त्र, छागलि, पुरुमित्र, राजा विराट, कौशाम्बी नरेश मालव, शतधन्वा, विदूरथ, भूरिश्रवा, त्रिगर्त, बाण और पञ्चनद– ये दुर्ग युद्ध का वेग सह सकने वाले नरेश शत्रुओं को कुचलते हुए इस पर्वत के उत्तर भाग पर चढ़ाई करें, इनका गौरव वज्र के तुल्य है।

शकुनिपुत्र उलूक, अंशुमान के पुत्र वीर, एकलव्य, दृढ़ाश्व, क्षत्रधर्मा, जयद्रथ, उत्तमौजा, शाल्व, केरलराज कौशिक, विदिशा के राजा वामदेव और पराक्रमी सुकेतु– इन सबके अधीन इस पर्वत का पूर्व भाग सौंप दिया जाए। ये लोग जैसे वायु बादलों को छिन्न–भिन्न कर देती है, उसी प्रकार शत्रुओं को विदीर्ण करते हुए उन पर धावा बोल दें। मैं, दरद तथा पराक्रमी चेदिराज दमघोष कवच आदि से सुसज्जित होकर इस पर्वत के दक्षिण भाग को विदीर्ण कर डालेंगे। इस प्रकार हमारी सेनाओं द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ यह पर्वत शीघ्र ही, मानों इस पर वज्र का आघात हो रहा हो, इस तरह घोर भय प्राप्त करे। गदाधारी वीर गदाओं से, परिघ चलाने वाले परिघों से तथा अन्य वीर नाना प्रकार के दूसरे अस्त्र–शस्त्रों से इस श्रेष्ठ पर्वत के टुकड़े–टुकड़े कर डालें।

विषम एवं ऊंची शिलाओं से युक्त इस भूधर को आप सभी भूपाल मिल कर आज ही भूमि के समान समतल कर डालें।' जरासन्ध की बात सुनकर समस्त राजाओं ने मगधराज की आज्ञा से गोमन्त पर्वत को चारों ओर से घेर लिया, ठीक उसी तरह जैसे समुद्र पृथ्वी को घेरे हुए है। उस समय देवताओं के राजा इंद्र के समान चेदिवासियों के अधिपति राजा दमघोष ने जरासन्ध से कहा- 'राजन! यह पर्वतों में श्रेष्ठ गोमन्त दुर्गम पर्वत है। इस पर युद्ध करने से आपको क्या लाभ होगा। इसके शिखर पर ऊंचे–ऊंचे वृक्ष और कांटेरे हैं, अत: इस पर चढ़ना बहुत कठिन काम है। मेरी तो राय है, बहुत से काठ और घास-फूस जुटा कर इस पर्वत को चारों और से घेर दिया जाए और अभी इसमें आग लगा दी जाए। इसी कार्य में शीघ्रता करनी चाहिए। दूसरे किसी प्रयत्न से कुछ होने–जाने वाला नहीं है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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