हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 42 श्लोक 44-55

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्विचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 44-55 का हिन्दी अनुवाद

क्योंकि क्षत्रिय लोग सुकुमार होते हैं। ये रण भूमि में बाणों द्वारा ही युद्ध कर सकते हैं। (पर्वत पर चढ़ना इनके लिए अत्यंत कठिन है) इस समय दुर्गम पर्वत पर चढ़कर वहाँ के पैदल योद्धाओं के साथ युद्ध करने के काम पर नियुक्त किया गया है (जो इनके लिए दुष्कर है)। तात! केवल घेरा डालने से या ऊपर चढ़ जाने से देवता भी इस पर्वत का मर्दन नहीं कर सकते। राजाओं! दुर्ग युद्ध में रोध युद्ध (घेरा डालने)– के द्वारा जो लड़ाई का क्रम चालू किया जाता है, वह श्रेयस्कर होता है (क्योंकि दुर्ग की खाद्य सामग्री समाप्त होने पर वहाँ के निवासियों का पतन अवश्यम्भावी है, परंतु यहाँ पर्वत निवासियों के लिए खाने–पीने की सामग्री सदा सुलभ है)। अन्न, जल और लकड़ी की कमी हो जाए तभी पर्वतवासी योद्धाओं को धराशायी किया जा सकता है। हमारी संख्या बहुत है और विपक्षियों की कम– ऐसा सोचना भी निपुण नीति का परिचायक नहीं है।

ये दोनों यदुवंशी भी युद्ध के लिए तैयार खड़े हैं, अत: इनकी अवहेलना नहीं करनी चाहिए। इनके पूरे–पूरे बल का ज्ञान किसी को नहीं है। ये दोनों देवताओं के समान तेजस्वी सुने जाते हैं। अपने कर्मों से तो ये अमर जान पड़ते हैं, क्योंकि बाल्यावस्था में ही ये अत्यंत बलशाली हैं। यदुकुल के इन श्रेष्ठ पुरुषों ने इस जगत में बड़े–बड़े दुष्कर कर्म किए हैं। अत: सूखे काठों और तिनकों से आवेशष्टित करके इस उत्तम पर्वत में हम सब और से आग लगा देंगे। इससे अचेत होकर वे दोनों भस्म हो जाएंगे। यदि आग से जलते हुए वे दोनों हमारा पास से निकलेंगे तो हम सब लोग मिलकर उन्हें मार गिराएंगे। इस तरह उन दोनों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ेगा।

राजाओं के हित की बात बताने वाले चेदिराज ने जो बात वहाँ कही, वह सेना-सहित समस्त राजाओं को अच्छी लगी। तदनन्तर उन्होंने काठ–कबाड़, घास–फूस और सूखी डाल वाले वृक्ष लाकर उनके द्वारा उस गिरिराज गोमन्त में आग लगा दी। उस समय आग की ज्वालाओं से घिरा हुआ वह पर्वत सूर्य की किरणों से आवृत मेघ के समान प्रतीत होता था। इसके बाद शीघ्रतापूर्वक पैर बढ़ाते हुए राजाओं ने जहाँ जैसा हवा का रुख था, उसके अनुसार तुरंत ही पर्वत के चारों ओर वह आग फैला दी। वायु से प्रज्वलित हुई आग वहाँ सब ओर से ऊपर को उठने लगी और धूमयुक्त ज्वाला मालाओं की प्रभा से आकाश की शोभा–सी बढ़ाने लगी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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