हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 39 श्लोक 56-69

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनचत्वा्रिंश अध्याय: श्लोक 56-69 का हिन्दी अनुवाद

हम लोग आज ही इस पुण्य नदी वेणा को भुजाओं से ही पार करके इस देश की सीमा पर स्थित एक दुर्गम पर्वत पर चले चलें, वहीं निवास करेंगे। उस पर्वत पर नाम है यज्ञगिरि, जो सह्यपर्वत की ही उपशाखा है। वह बड़ा ही रमणीय स्थान है। वहाँ इन दिनों भयानक कर्म करने वाले मांसाहारी चोर-डाकुओं ने अड्डा जमा रखा है। उस पर्वत पर भाँति-भाँति के वृक्ष और लताऐं लहलहा रही हैं। वृक्षों में फूल लगे हुए हैं। इससे उस पर्वत की विचित्र शोभा होती है। वहाँ हम लोग एक रात निवास करेंगे। तदनन्तर खट्वांगा नाम वाली नदी को पार करेंगे, जो कसौटी के पत्थरों से विभूषित है। तुम्हारा भला हो। वह नदी उस महान पर्वत से गिरी हुई है, जो गंगा के प्रपात-सी दिखायी देती है।

खट्वांगा का प्रपात (झरना) तापसारण्य से विभूषित है, हम लोग उसे देखेंगे और वहीं कुछ खा-पीकर इन कमनीय एवं प्रसिद्ध पर्वतों पर विचरते हुए वहाँ उन तपस्वी ब्राह्मणों का दर्शन करेंगे, जो तप में संलग्न होकर कष्ट उठा रहे हैं। तत्पश्चात हम रमणीय एवं श्रेष्ठ नगर क्रौञ्चपुर में चलेंगे। श्रीकृष्ण! वहाँ तुम्हारे ही कुल में उत्पन्न एक राजा राज्य करते हैं महाकपि; वे वनवासी जनपद तथा वहाँ के निवासी प्रजाओं के अधिपति हैं। उस राज से मिले बिना ही हम लोग निवास के लिये संध्या होते-होते आनडुह नामक तीर्थ में जा पहुँचेंगे और वहाँ एक साथ मिलकर रहेंगे। वहाँ से उतरकर हम लोग सह्य पर्वत की गुफा में होते हुए गोमन्त नाम से विख्यात शैल पर जा पहुँचेंगे, जो अनेकानेक शिखरों से विभूषित है। उसका एक विशाल शिखर इतना ऊंचा है कि वह स्वर्गलोक तक पहुँचा हुआ जान पड़ता है। आकाशचारी पक्षियों के लिये भी उस पर चढ़ना कठिन है। वह देवताओं का विश्राम-स्थल है और ज्योतियों से घिरा हुआ है।

उसे स्वर्ग का सोपान समझा जाता है। वह उच्चतम पर्वत (भूतल का नहीं) आकाश का-सा पर्वत जान पड़ता है। उस पर देवताओं के विमान उतरते हैं तथा वह दूसरे मेरु गिरि के समान दिव्य रूपधारी तथा तेजस्वी हो। उस गोमन्तर गिरि के महान शिखर पर आरूढ़ होकर उदय और अस्त के समय सूर्य एवं नक्षत्रों के स्वामी चन्द्रमा का तथा अपार द्वीपों से विभूषित और तरंग मालाओं से अलंकृत समुद्र का दर्शन करते हुए तुम दोनों बन्धु वहाँ पर्वतीय शिखर के अग्रभाग में सुखपूर्वक विचरोगे। उस गोमन्त नामक शैल के शिखर पर रहकर वहाँ के वन में विचरते हुए तुम दोनों वीर दुर्ग युद्ध द्वारा धावा करके जरासंध को जीत लोगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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