हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 39 श्लोक 70-83

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनचत्वा्रिंश अध्याय: श्लोक 70-83 का हिन्दी अनुवाद

तुम दोनों रण-दुर्मद वीरों को उस पर्वत पर आरूढ़ हुआ देख जरासंध पर्वत-युद्ध में ही आसक्त हो जायगा। वहाँ भयंकर युद्ध आरम्भ हो जाने पर तुम दोनों के हाथ में भी शीघ्र ही दिव्य आयुधों के संयोग हुआ देखूंगा। श्रीकृष्ण! वहाँ देवताओं ने यादवों तथा अन्य राजाओं के महान युद्ध का निर्देश किया है, जिसमें रक्त और मांस की कीच जम जाने वाली है।

वहाँ सुदर्शन चक्र, संवर्तक हल, कौमोद की गदा तथा सौनन्द नामक मुसल- ये विष्णु सम्बन्धी आयुध संग्राम में तुम्हें दर्शन देंगे और अपने काल के समान स्वरूपों से काल के अधीन हुए राजाओं का रक्त पीयेंगे। श्रीकृष्ण! वह संग्राम चक्र-मुसल के नाम से विख्यात होगा। देवताओं ने इसी स्थान पर उसके होने का संकेत किया है। वह युद्ध साक्षातकाल का आज्ञा पत्र है। देवताओं की उत्पत्ति और वृद्धि करने वाले श्रीकृष्ण उस संग्राम में समस्त शत्रु और देवता भी तुम्हारे भली-भाँति व्यक्त हुए वैष्णव रूप का दर्शन करेंगे। श्रीकृष्ण! तुम अपने उसी वैष्णव रूप से स्थित हो देवताओं की विजय के लिये चिरकाल से भूले हुए अपने उस चक्र और गदा को ग्रहण करना तथा ये लोकभावन बलराम भी देवद्रोहियों का वध करने के लिये अपने शत्रु विदारण घोर हल और मूसल को हा‍थ में ले लें।

श्रीकृष्ण! पृथ्वी का भार उतारने के लिये भूमण्डल के राजाओं के साथ तुम्हारा यह पहला संग्राम देवताओं द्वारा बताया गया है। यहीं तुम्हें अपने दिव्य आयुधों की, वैष्ण्वस्वरूप की, लक्ष्मी की तथा शत्रुव्यूहों का विदारण करने वाले तेज की प्राप्ति होगी। श्रीकृष्ण‍! इसके बाद पृथ्वी पर अस्त्र-शस्त्रों से व्याप्त एक महान संग्राम होगा, जो लोगों में महाभारत नाम से प्रसिद्ध होगा। अत: श्रीकृष्ण! तुम पर्वतों में श्रेष्ठ गिरिराज गोमन्तय पर चलो। जरासंध के युद्ध में भी विजयश्री तुम्हारा ही वरण करने के लिये प्रस्तुत है। तुम्हारा कल्याण हो। मेरी इस होमधेनु का यह अमृतोपम सुमधुर दुग्ध पीकर मेरे बताये हुए मार्ग से चलो।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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