हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 37 श्लोक 15-27

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्तत्रिंश अध्याय: श्लोक 15-27 का हिन्दी अनुवाद

दानवराज मधु के कुल में उत्पन्न हुई वह सुन्दर कटि प्रदेश वाली कामरूपिणी देवी रोहिणी के समान एक पत्नीव्रत का पालन करने वाली तथा आकाश में विचरने वाली थी। वह कामिनी होकर इक्ष्वाकु वंश के श्रेष्ठ वीर हर्यश्व को सम्पूर्ण से हृदय चाहती थी। माधव! एक दिन बड़े भाई ने उनके विश्वास पर रहने वाले नरश्रेष्ठ हर्यश्व को राज्य से निकाल दिया, तब उन्होंने अयोध्या छोड़ दी और थोड़े से परिवार के साथ अपने प्रिया मधुमती सहित वे वन में रहने लगे काल की महिमा को जानने वाले कमलनयन हर्यश्व अपनी प्यारी पत्नी के साथ मिलकर वहाँ बड़े आनन्द से समय बिताने लगे। एक दिन कमलनयनी मधुमती ने भाई द्वारा राज्य से निकाले गये पति से कहा- ‘नरश्रेष्ठ वीर! अयोध्या के राज्य की अभिलाषा छोड़ दो और आओ मेरे साथ चलो। हम दोनों मेरे पिता मधु के घर चलें सुरम्य मधुवन नामक वन ही मेरे पिता का निवास स्थान है। वहाँ के वृक्ष इच्छानुसार फूल और फल देने वाले हैं।

वहाँ हम दोनों साथ रहकर स्वर्गवासियों के सामने मौज करेंगे।' पृथ्वीनाथ! मेरे पिता और माता दोनों को ही तुम बहुत प्रिय हो और मेरा प्रिय करने के लिये मेरा भाई लवणासुर भी तुम्हें अत्यन्त प्रिय मानेगा। नरश्रेष्ठ! वहाँ जाकर हम दोनों साथ-साथ रहकर राज्य पर बैठे हुए दम्पत्तियों की भाँति इच्छानुरूप वस्तुओं का उपभोग करते हुए रमण करेंगे। जैसे देवपुरी के नन्दवन में देवांगना और देवता विहार करते हैं, उसी प्रकार वहाँ हम दोनों विहार करेंगे। आपका भला हो। महाराज! आपका भाई राज्य के मद से सदा उन्मत्त रहकर अभिमान में भरा रहता है और हम दोनों से द्वेष रखता है; अत: हम दोनों उसे त्याग दें।

दास की भाँति दूसरे के आश्रित होकर रहना अच्छा नहीं है; अत: इस निन्दित निवास को धिक्कार है। वीर! चलो, हम दोनों मेरे पिता के घर के पास चलें।' श्रीकृष्ण! यद्यपि हर्यश्व का अपने बड़े भाई के प्रति अच्छा बर्ताव था। (वह उनसे कोई प्रतिशोध नहीं लेना चाहता था) तो भी काम से पीड़ित होने के कारण उस नरेश को पत्नी की बात पसंद आ गयी तब कामी पुरुष प्रवर राजा हर्यश्व अपनी कामवती पत्नी के साथ मधुपुर को चला गया। वहाँ दानवराज मधु ने उससे कहा- ‘बेटा हर्यश्व! तुम्हारा स्वागत है, मैं तुम्हारे दर्शन से (अथवा तुम से मिलकर) बहुत प्रसन्न हूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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