हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 37 श्लोक 28-43

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्तत्रिंश अध्याय: श्लोक 28-43 का हिन्दी अनुवाद

राजेन्द्र! यह जो मेरा सारा राज्य है, उसे मैं केवल मधुवन को छोड़कर तुम्हें सौंप रहा हूँ। तुम यहाँ निवास करो। इस वन में यह मेरा पुत्र लवण भी तुम्हा‍रा सहायक होगा तथा शत्रुओं का निग्रह करने में यह तुम्हा‍रे लिये कर्णधार का काम देगा। तुम समुद्र के जलप्राय प्रदेश से विभूषित इस शुभ राष्ट्र का पालन करो। यह गौओं से समृद्ध और लक्ष्मी से सेवित है तथा इसमें अधिकतर आभीर जाति के लोगों का निवास है। तात! यहाँ रहने पर महान एवं दुर्गम गिरिपुर (गिरिनार या रैवतक पर्वत से मिला हुआ नगर) तुम्हारी राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित होगा। यह महान सौराष्ट्र राज्य समुद्र के निकट और जलप्राय प्रदेश से युक्त है। यहाँ किसी प्रकार का रोग नहीं होता। तुम्हारा विशाल विस्तृत राज्य आनर्त नाम से विख्यात होगा।

पृथ्वीनाथ! मेरा विश्वास है कि कालयोग से वह अवश्यम्भावी है। तुम समयानुसार उत्तम राजोचित बर्ताव का आश्रय लेकर यहाँ रहो- तुम्हारा यह वंश ययाति एवं यदु के वंश में मिल जायेगा। चन्द्रवंश के भीतर तुम्हारा वंश चलेगा। (सूर्य वंश से उसका कोई सम्बन्ध नहीं रह जायेगा) तात! यही मेरा विभव है। मैं तुम्हे यह उत्तम राज्य देकर तपस्या के लिये लवण समुद्र को चला जाऊंगा। तात! तुम लवण के साथ रहकर अपने वंश की वृद्धि के लिये समस्त उत्तम राज्य का पालन करो’ तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर हर्यश्व ने उस पुर को ग्रहण किया; फि‍र वह दैत्य तपस्या के लिये समुद्र को चला गया। अमरों के समान महातेजस्वी हर्यश्व ने दिव्य एवं श्रेष्ठ गिरिवर (रैवतक) के समीप अपने रहने के लिये एक नगर वसाया आनर्त नाम से प्रसिद्ध गौधन सम्पन्न राष्ट्र सौराष्ट्र कहलाया और थोड़े ही समय में समृद्धिशाली हो गया।

जलप्राय देश में समुद्र तटवर्ती वनों से विभूषित, विचित्र खेतों और हरी-भरी खेती से सुशोभित, परकोटों और गावों से युक्त तथा धन-धान्य से सम्पन्न उस राष्ट्र पर राष्ट्र की वृद्धि करने वाले राजा हर्यश्व शासन करने लगे और राजधर्म एवं यश से प्रजा का आनन्द बढ़ाने लगे। महामना हर्यश्व के उत्तम आचार्य व्यवहार के कारण अक्षोभ राष्ट्र उत्तम राष्ट्र के गुणों से सम्पन्न हो निरंतर उन्नति करने लगा राज्य पर स्थित होकर राजोचित बर्ताव से सुशोभित होने वाले उन राजा हर्यश्व ने सदाचार और उत्तम नीति से अपने कुल के लिये उचित लक्ष्मी प्राप्त कर ली।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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