हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 34 श्लोक 13-22

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चतुस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 13-22 का हिन्दी अनुवाद


वे महाधर्नुधर तथा महापराक्रमी नरेशगण जरासंध का ही प्रिय चाहने वाले थे। उनके नाम इस प्रकार हैं- करुषदेश का राजा दन्तधवक्त्रा, पराक्रमी चेदिराज शिशुपाल, कलिंग देश का राजा श्रुतायु, बलवानों में श्रेष्ठ पौण्डरक (वासुदेव), सांकृति, केशिक, राजा भीष्मक तथा धनुर्धारियों में श्रेष्ठ भीष्मकपुत्र रुक्मी, जो महासमर में श्रीकृष्ण के साथ और अर्जुन के साथ लड़ने का हौसला रखता था।

वेणुदारि, श्रुतवां, क्रथ, अंशुमान, बलवान अंगराज, बंगनरेश, कौसलनरेश, काशिराज, दशार्ण देश के अधिपति, पराक्रमी सुखेश्वर, विदेहराज, बलवान मद्रराज (शल्य), त्रिगर्त देश का शासक सुशर्मा, पराक्रमी शाल्वराज, महाबली दरद, यवनों का राजा पराक्रमी भगदत्त, सौवीर देश का राजा, शैब्य, बलवानों में श्रेष्ठ पाण्ड्य, गान्धारराज सुबल, महाबली नग्नाजित, काश्मीरराज गोनर्द, दरददेश के अधिपति, धृतराष्ट्र के महाबली पुत्र दुर्योधन आदि– ये तथा और भी बलवान महारथी राजा श्रीकृष्ण से द्वेष रखते हुए जरासंध के साथ आये थे। शूरसेन देश में, जहाँ दाना-घास और लकड़ी बहुतायत थी, आकर अपनी-अपनी सेनाओं को आगे करके मथुरा पर घेरा डालकर रहने लगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अंतर्गत विष्णु पर्व में जरासंध की सेना द्वारा मथुरा पर घेराविषयक चौंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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