हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 119 श्लोक 194-203

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 194-203 का हिन्दी अनुवाद

अत: आप इसकी रक्षा कीजिये।' इतना कहकर ही कुम्भाण्ड चुप हो गये। महात्मा कुम्भाण्ड के ऐसी बात कहने पर शत्रुसूदन बाणासुर भी उनसे ‘तथास्तु’ कहकर चुपचाप बैठा रहा। तदनन्तर बुद्धिमान अनिरुद्ध के लिये पहरेदार देकर महायशस्वी बलिपुत्र बाणासुर अपने घर को ही चला गया।

महाबली अनिरुद्ध को माया द्वारा बँधा हुआ देख मुनिश्रेष्ठ नारद आकाश मार्ग से द्वारकापुरी की ओर चल दिये। मुनिवर नारद जी के चले जाने पर अनिरुद्ध मन-ही-मन इस प्रकार विचार करने लगे- यह क्रूर दानव कहीं छिप गया है। पुन: युद्ध के लिये आयेगा, इसमें संशय नहीं है। नारद जी वहाँ जाकर शंख-चक्र-गदाधर भगवान श्रीकृष्ण से यह सब समाचार ठीक-ठीक बतायेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है। साँपों से बँधकर अनिरुद्ध चेष्टाहीन हो गये हैं, यह देख व्याकुल हुई उषा फूट-फूटकर रोने लगी। उसके नेत्र आँसुओं से भर गये, तब उस रोती हुई उषा से अनिरुद्ध ने कहा-

भीरु! तुम इस तरह रोती क्यों हो? मृगलोचने! भयभीत न हो। सुश्रोणि! देखो, भगवान मधुसूदन मेरे लिये यहाँ आना ही चाहते हैं। जिनके शंखनाद को, भुजाओं के शब्द को और बल की चर्चा को सुनकर दानव नष्ट हो जायगें और असुरों की स्त्रियों के गर्भ गिर जायँगे। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! अनिरुद्ध के ऐसा कहने पर उषा को विश्वास हो गया। वह सुन्दर कटिप्रदेश वाली सुन्दरी अब अपने निर्दय पिता के लिये शोक करने लगी।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्‍तर्गत विष्णु पर्व में बाणासुर और अनिरुद्ध का युद्ध विषयक एक सौ उन्नीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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