हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 121 श्लोक 105-121

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 105-121 का हिन्दी अनुवाद

जहाँ प्रद्युम्नकुमार अनिरुद्ध निवास करते हैं, वहाँ शीघ्र मुझे पहुँचा दो। वीर! विदर्भराज रुक्मी की पुत्री शुभांगी जो तुम्हारी पुत्रवधू लगती है, अपने पुत्र से मिलने की इच्छा रखकर रो ही है। तुम्हारी कृपा से यह भामिनी अपने पुत्र से मिल सके- ऐसा प्रयत्न करो। सर्पशत्रो! तुमने पूर्वकाल में (देवताओं को पराजित करके) अमृत का अपहरण किया था। महाबाहो! वह समय तुम्हें याद होगा जबकि तुम मेरे साथ मिलकर मेरे ध्वजरूप हुए थे। ये समस्त वृष्णिवंशी तुम्हारे भक्त हैं। पक्षिराज! आज तुम हमारी मैत्री तथा भक्ति का आदर करो। तुम्हारे वेग की समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है। दूसरे पक्षी भी तुम्हारे समान नहीं है। सर्पनाशन गरुड़! मैं पुण्य की शपथ खाकर तुम से यह बात कह रहा हूँ। पूर्वकाल में जब माता विनता दासीभाव को प्राप्त हुई थीं, उस समय तुमने अकेले ही उनका उद्धार किया था। अपने पंखों के प्रहार मात्र से पहले तुमने बहुत-से योद्धाओं का संहार कर डाला है। तुम इन समस्त यादव वीरों को, जो देवगणों के अंश से उत्पन्न हैं, अपनी पीठ पर बिठाकर पराक्रमपूर्वक मेरे साथ उन अगम्य देशों में चलो। तुम्हारे भरोसे ही आज हमारी विजय है। तुम गुरुता में मेरु के समान और शीघ्रतापूर्वक चलने में वायु के तुल्य हो। भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों में तुम्हारे समान विक्रमशाली दूसरा कोई नहीं है। महातेजस्वी, महाभाग, सत्यप्रतिज्ञ, विनतानन्दन! आज अनिरुद्ध से मिला देने में तुम हमारी सहायता करो।'

गरुड़ बोले- महाबाहो! श्रीकृष्ण! आपकी यह बात तो बड़ी अद्भुत है। बड़ी बाँह वाले प्राभो! आपकी कृपा से ही सर्वत्र विजय होती है। मधुसूदन! आपने जो मेरी स्तुति-प्रशंसा की है, इससे मैं धन्य हो गया। यह आपने मुझ पर महान अनुग्रह किया। महाबाहु श्रीकृष्ण! मुझे आपकी स्तुति करनी चाहिये, किंतु आप उलटे मेरी ही स्तुति कर रहे हैं। आप सम्पूर्ण वेदों के अध्यक्ष (उनके द्वारा प्रतिपादित सर्वसाक्षी चेतन परमात्मा) हैं। देवताओं के भी स्वामी तथा सम्पूर्ण कामनाओं के दाता हैं। आपका दर्शन अमोघ है। आप वरार्थी पुरुषों को वर देने वाले हैं। आपकी चार भुजाएँ हैं। वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध- ये चार आपकी मूर्तियाँ हैं। आप चातुर्होत्र यज्ञ के प्रवर्तक हैं। चारों आश्रमों में होता है। चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति कराने वाले तथा महाज्ञानी हैं। आप शांर्ग धनुष, सुदर्शन चक्र और पांचजन्य शंख धारण करने वाले महान विष्णु हैं। प्रभो! आप अपने पूर्व विग्रहों (कूर्म, वराह आदि अवतारों) में धरणीधर के रूप में विख्यात हैं। आप ही हलधर, मुसलधारी और चक्र धारण करने वाले हैं। आप देवकी के पुत्र, चाणूर का संहार करने वाले, गौओं के प्रिय तथा कंस का वध करने वाले हैं। आप ही गोवर्धनधारी हैं। आप मल्लों के शत्रु, मल्लों के पोषक, मल्लों के प्रेमी, महामल्ल स्वरूप तथा महापुरुष हैं। आप ब्राह्मणों के प्रिय, ब्राह्मणों के हितैषी, ब्राह्मणों के ज्ञाता, ब्राह्मणों के पालक तथा ब्राह्मणभक्त हैं। आप ही सर्वश्रेष्ठ दामोदर कहे गये है। आपने ही बलभद्र रूप से प्रलम्बासुर का संहार किया है। आप केशी के हन्ता तथा दानवों के काल हैं। आपने ही असिलोमा का वध किया है। आप ही बाली तथा रावण का विनाश करने वाले और विभीषण को राज्य देने वाले भगवान श्रीराम हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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