हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 119 श्लोक 155-170

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 155-170 का हिन्दी अनुवाद

बाणों की वर्षा से आच्छादित हो अनिरुद्ध के सारे अंग खून से लथपथ हो गये, इस तरह पराभव प्राप्त होने से अनिरुद्ध का क्रोध बहुत बढ़ गया और वे बाणासुर के रथ की ओर चल दिये। उस समय तलवारों, मुसलों, शूलों, पट्टिशों, तोमरों और बाण समूहों से अत्यन्त घायल होने पर भी प्रद्युम्‍नकुमार कम्पित नहीं हुए। सहसा क्रोधपूर्वक उछलकर उन्होंने बाणासुर के रथ के हरसे को काट दिया और युद्ध के मुहाने पर तलवार से ही उसके घोड़ों मार डाला। तब युद्ध मार्ग के ज्ञान में निपुण बाणासुर ने पुन: पट्टिशों, तोमरों और बाणों की वर्षा करके अनिरुद्ध को ढक दिया। अब यह मारा गया ऐसा जानकर वे दैत्य गर्जना करने लगे, इतने में ही अनिरुद्ध सहसा कूदकर रथ के पार्श्वभाग में खड़े हो गये। तब कुपित हुए बाणासुर ने रणभूमि में एक घोर एवं भयानक शक्ति हाथ में ली, जो अग्नि के समान प्रज्वलित हो रही थी, वह घोर शक्ति घंटाओं की मालाओं से व्याप्त थी। उसका तेज अग्‍नि और सूर्य के समान जान पड़ता था तथा वह यमदण्ड के समान भयानक दिखायी देती थी, उस दैत्य ने निर्भय होकर जलती हुई उल्का के समान वह शक्ति अनिरुद्ध पर चला दी।

उस समय जीवन का अन्त कर देने वाली उस शक्ति को अपने ऊपर आती देख पुरुष प्रवर महाबली अनिरुद्ध ने उछलकर तत्काल उसे हाथ से पकड़ लिया और उसी शक्ति से बाणासुर को विदीर्ण डाला, वह शक्ति उसके शरीर को करती हुई पृथ्वी में समा गयी। उस शक्ति की गहरी चोट से पीड़ित हो बाणासुर ने ध्वजदण्ड का सहारा ले लिया। उसे मूर्च्छित हुआ देख कुम्भाण्ड ने उससे कहा- ‘दानवराज! इस प्रकार उद्यत हुए शत्रु की उपेक्षा किसलिये करते हो। इस वीर ने अपना लक्ष्य पा लिया है, अत: आज निर्विकार दिखायी देता है। माया का आश्रय लेकर युद्ध करो, अन्यथा यह मारा नहीं जा सकेगा। तुम अपनी और मेरी भी रक्षा करो। प्रमादवश उपेक्षा क्यों करते हो। इसको अभी मार डालो, कहीं ऐसा न हो यह सब लोगों का नाश कर डाले, यदि तुम सावधान नहीं हुए तो यह अन्य सैकड़ों वीरों को मारकर उषा को भी लेकर चला जायगा।' कुम्भाण्ड के वचनों से इस प्रकार प्रेरित हुआ वक्ताओं से श्रेष्ठ दानवराज बाण अत्यन्त कुपित हो यह रूखी बात बोला- ‘यह लो! मैं अभी रणभूमि में इसे मौत के हवाले कर देता हूँ, जो इसके प्राण हर लेगी। जैसे गरुड़ सर्प को दबोच लेता है, उसी प्रकार मैं भी इसे अपने काबू में कर लूँगा’। ऐसा कहकर रथ, ध्वज, घोड़े और सारथी सहित बाणासुर गन्धर्वनगर के समान वहीं अन्तर्धान हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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