हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 116 श्लोक 21-39

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षोडशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-39 का हिन्दी अनुवाद


इसके बाद सहस्रबाहु बाणासुर अपने बल-पराक्रम के मद से उन्मत्त होकर देवताओं को कुछ भी न समझकर सदा सबके साथ युद्ध की आकांक्षा रखने लगा। बाणासुर पर प्रसन्न हुए कुमार कार्तिकेय ने उसे अग्नि के तुल्य तेजस्वी ध्वज तथा तेज से प्रकाशित मयूर वाहन रूप में प्रदान किया। देवाधिदेव महादेव जी के तेज से सुरक्षित हुए बाणासुर के सामने युद्ध में न तो देवता ठहर पाते थे, न गन्धर्व, न यक्ष टिक पाते थे, न नाग। त्रिनेत्रधारी शिव के द्वारा सुरक्षित हुआ वह महान असुर बल के घमंड में भर गया और बारम्बार युद्ध का ही अवसर ढूँढने लगा। एक दिन वह त्रिशूलधारी भगवान शंकर के पास गया। वृषभध्वज रुद्रदेव के पास जाकर उन्हें प्रणाम और अभिवादन करने के पश्चात बलिपुत्र बाण ने उनसे यह बात पूछी- 'प्रभो! आपका सहारा पाकर सेना सहित मैंने बल के मद और अभिमानपूर्वक साध्यों और मरुद्गणों सहित देवताओं को अनेक बार परास्त किया है। वे मुझे पराजित करने की ओर से तो निराश हैं, परंतु मेरे द्वारा पुन: पराजित होने के भय से डरे हुए हैं, अत: इस देश में आकर इसी नगर में सुखपूर्वक निवास करते हैं। साथ ही मेरी आज्ञा ले स्वर्ग में भी जाकर वहाँ सुखपूर्वक रहते हैं, अत: मैं युद्ध से निराश हो गया हूँ। अब युद्ध न मिलने से मुझे जीवित रहने की इच्छा नहीं होती।

यदि युद्ध का सुयोग न मिला तो मेरे लिये इन सहस्र भुजाओं का बोझ ढोना व्यर्थ हैं, अत: बताइये, क्या मुझे युद्ध का अवसर प्राप्त हो सकता है? देव! युद्ध के बिना मेरा मन कहीं नहीं लग रहा है। अत: इसके लिये मुझ पर कृपा कीजिये।' यह सुनकर भगवान वृषभध्वज ठठाकर हँस पड़े और इस प्रकार बोले- 'बाणासुर! जिस प्रकार तुम्हें युद्ध का अवसर प्राप्त होगा, वह सुनो। तात! अपने स्थान पर स्थापित हुआ तुम्हारा यह ध्वज जब खण्डित होकर गिर जायगा, तब तुम्हें युद्ध प्राप्त होगा।' उनके ऐसा कहने पर वाणासुर का मुख प्रसन्नता से खिल उठा। वह आनन्द में मग्न होकर बारम्बार जोर-जोर से हँसने लगा और भगवान शिव के चरणों में गिरकर इस प्रकार बोला- 'प्रभो! बड़े सौभाग्‍य की बात है कि मेरे लिये इन सहस्र भुजाओं को धारण करना व्यर्थ नहीं होगा। सौभाग्‍य से मैं पुन: युद्ध में सहस्र लोचन इन्द्र को परास्त करूँगा। ऐसा कहकर शत्रुमर्दन बाण आनन्दाश्रुओं से परिपूर्ण नेत्रों तथा पाँच सौ अश्चलियों द्वारा महादेवजी की पूजा करता हुआ पुन: पृथ्वी पर उनके चरणों में पड़ गया।' तब महादेव जी बोले। वीर! उठो, उठो! तुम अपनी इन भुजाओं तथा कुल के अनुरूप ऐसा महान युद्ध प्राप्त करोगे, जिसकी कहीं तुलना नहीं है।

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! महात्मा त्र्यम्बक के ऐसा करने पर हर्ष से उत्फुल्ल हुए बाणासुर ने भगवान वृषभध्वज को शीघ्र नमस्कार किया। तदनन्तर भगवान नीलकण्ठ से विदा लेकर शत्रुनगरी पर विजय पाने वाला बाणासुर अपने घर को गया, जहाँ विशाल ध्वजगृह बना हुआ था। वहाँ बैठकर हँसते हुए बाण ने अपने मंत्री कुम्भाण्ड से इस प्रकार कहा- मन्त्रिप्रवर! मैं तुम्हें प्रिय समाचार निवेदन करूँगा, जो तुम्हारे मन को अभीष्ट है। उसका ऐसा कथन सुनकर हँसते हुए कुम्भाण्ड ने युद्ध में अनुपम वीरता प्रकट करने वाले बाणासुर से कहा- 'राजन! यह क्या बात है? आप मेरे किस प्रिय समाचार को बताना चाहते हैं?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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