हरि ब्रज कबहि कह्यौ है आवन।
बेगि सु वचन सुनाइ मधुप मोहि, विरह बिथा बिसरावन।।
हौ यह बात कहा जानौ पिय जात, मधुपुरी छावन।
पछिली चूक समुझि उर अंतर, अब लागी पछितावन।।
सब निसि ‘सूर’ सेज भई बैरिनि, ससि सीरौ तन तावन।
कब वै अंचल उर कर गहिहै, दुसह बियोग नसावन।।3660।।