तुरत गए नँद-सदन कन्हाई।
अंकम दै राधा घर पठई, बादर जहँ-तँह दिए उड़ाई।।
प्यारी की सारी आपुन लै, पीतांबर राधा उर लाई।।
जो देखै जसुमति हरि ओढ़े, मन यह कहति कहाँ धौं पाई।।
जननी-नैन तुरत लखि लीन्हौ, तबहिं स्याम इक बुद्धि-उपाई।।
सूरदास जसुमति सुत सौं कहै, पीत ओढ़नी कहाँ गँवाई।।692।।