व्रज री मनौ अनाथ कियौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


व्रज री मनौ अनाथ कियौ ।
सुनि री सखी जसोदानदन सुख सदेह दियौ ।।
तब वह कृपा स्यामसुदर की, कर गिरि टेक लियौ ।
अरु प्रतिपाल गाइ ग्वारनि कौ, जल काबिदि पियौ ।।
यह सब दोष हमहि लागत है, बिछुरत फटयौ न हियौ ।
‘सूरदास’ प्रभु नँदनदन बिनु, कारन कौन जियौ ।। 3159 ।।

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