व्रज री मनौ अनाथ कियौ ।
सुनि री सखी जसोदानदन सुख सदेह दियौ ।।
तब वह कृपा स्यामसुदर की, कर गिरि टेक लियौ ।
अरु प्रतिपाल गाइ ग्वारनि कौ, जल काबिदि पियौ ।।
यह सब दोष हमहि लागत है, बिछुरत फटयौ न हियौ ।
‘सूरदास’ प्रभु नँदनदन बिनु, कारन कौन जियौ ।। 3159 ।।