प्रभु जू बिपदा भली बिचारी।
धिक यह राज बिमुख चरननि तैं, कहति पांडु की नारी।
लाखा-मंदिर कौरव रचियौ, तहँ राखे बनवारी।
अंबर हरत सभा मैं कृष्ना सोक –सिंधु तै तारी।
अतिथि रिषोस्वर सापन आए, सोच भयौ जिय भारी।
स्वल्प साग तैं तृप्त किए सब, कठिन आपदा टारी।
जन अर्जुन की रच्छा कारन, सारथि भए मुरारी।
सोई सूर सहाइ हमारे, संतनि के हितकारी।।282।।