नारद सौं नृप करत विचार। ब्रज मैं ये दोउ कोउ अवतारि।
नंद-सुवन बलराम कन्हाई। इनकी गति मैं कछू न पाई।
तृनावर्त से दूत पठाए। ता पाछैं कागासुर धाए।
बकी पठाइ दई पहिलै हीं। ऐसनि कौ बल वै सब लेहीं।
उनतैं कछू भयौ नहिं काजा। यह सुनि-सुनि मोहिं आवति लाजा।
अब मुनि तुम इक बुद्धि बिचारहु। सूर स्याम बलरामहिं मारहु।।521।।