खेलत गज संग कुँवर स्याम राम दोऊ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कल्यान



खेलत गज संग कुँवर स्याम राम दोऊ।
क्रोध दुरद व्याकुल अति, इनकौ रिस नैकु नहिं चकित भए जोधा तहँ देखत सब कोऊ।।
स्याम झटकि पूँछ लेत हलधर कर सूँड़ि देत, महल नारि चरित देखतिं यह भारी।
ऐसे आतुर गुपाल, चपल नैन मुख रसाल, लिए करनि लकुट लाल, मनौ नृत्यकारी।।
सुरगन व्याकुल विमान, मन मन सब करत ज्ञान, बोलत यह बचन अजहुँ मारयौ नहिं हाथी।
'सूरज' प्रभु स्याम राम, अखिल लोक के विस्राम, सुरनि करन पूर्न काम, नाम लेत साथी।।3057।।

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