सीय-सुधि सुनत रघुबीर धाए।
चले तब लखन, सुग्रीव, अंगद हनू, जामवंत, नील, नल सबै आए।
भूमि अति डगमगो, जोगिनी सुनि जगी, सहम-फन सेस कौ सोस काँप्यौ।
कटक अगिनित जुरयौ, लंक खरभर परयौ, सूर कौ तेज धर-धूरि-ढाँप्यौे।
जलधि-तट आइ रघुराइ ठाढ़े भए, रिच्छ -कपि गरजि कै धुनि सुनायौ।
सूर रघुराइ चितए हनूमान-दिसि, आइ तिन तुरत ही सीस नायौ॥106॥