भक्त बछलता प्रगट करी -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग
अर्जुन-दुर्योधन का कृष्‍ण-गृह-गमन



भक्‍त बछलता प्रगट करी।
सत संकल्‍प बेद की आज्ञा, जन के काज प्रभु दूरि धरी।
भारतादि दुरजोधन, अर्जुन, भेंटन गए द्वारिकापुरी।
कमलनैन पौढ़ै सुख-सैज्‍या, बैठे पारथ पाइतरी।
प्रभु जागे, अर्जुन-तन चितयौ, कब आए तुम, कुसल खरो ?
ता पाछैं दुर्जोधन भेद्यौ, सिर-दिसि तैं मन गर्ब धरी।
दुहुँनि मनोरथ अपनौ भाष्‍यौ, तब श्रीपति बानी उचरी।
जुद्ध न करौं, सस्त्र नहिं पकरौं, एक ओर सेना सिगरी।
हरि प्रभाउ राजा नहिं जान्‍यौ, कह्यौ सैन मोहि देहु हरी।
अर्जुन कह्यौ, जारि सरनागत, कृपा करौ ज्‍यौं पूर्व करी।
निज पुर आइ, राइ, भीषम सौं, कही जो बातैं हरि उचरी।
सूरदास भीषम परतिज्ञा, अस्त्र गहावन पैज करी।।।268।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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