हरि की कथा होइ जब जहाँ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलावल
श्रीभागवत प्रसंग



 
हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करौ। हरि-चरनारबिद उर धरौ।
हरि की कथा होइ जब जहाँ। गंगाहू चलि आवै तहाँ।
जमुना, सिंधु, सरस्वती आवै। गोदावरी बिलंब न लावै।
सर्व तीर्थ कौ बासा तहाँ। सूर हरि-कथा होवै जहाँ।।224।।

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