गोबिंद सौ पति पाइ, कहँ मन अनत लगावै ?
स्याम-भजन बिनु सुख नहीं, जौ दस दिसि धावै।
पति कौ ब्रत जौ धरै तिया, सो सोभा पावै।
आन पुरुष कौ नाम लै, पतिव्रतहिं लजावै।
गनिका उपज्यौ पूत, सो कौन को कहावै।
बसत सुरसरो तींर, मंदमति कूप खनावै।
जैसैं स्वान कुलाल के, पाछै लगि धावै।
आन देव हरि तजि भजै, सो जनम गँवावै।
फल की आसा चित धरि, जो बृच्छ बढावै।
महा मूढ़ सो सूल तजि, साखा जल नावै।
सहज भजै नँदलाल कौं, सोसब सचुपावै।
सूरदास हरि नाम ले, दुख निकट न आवैं।।9।।