कमल सक्टनि भरे ब्याल मानो।
स्याम के बचन सुनि, मनहिं मन रह्यौ गुनि,
काठ ज्यौं गयौ धुनि, तनु भुलानौ।
भयौ बेहाल, नँदलाल कै ख्याल इहिं,
उरग तैं बाँचि फिरि ब्रजहिं आयौ।
कह्यौ दावानलहिं देखौं तेरे बलहिं,
भस्म करि ब्रज पलहिं, कहि पठायौ।
चल्यौ रिस पाइ अतुराइ तब धाइ कै,
ब्रज-अवनि बन सहित जारि आऊँ।
नृपति के लै पान, मन कियौ अभिमान,
करत अनुमान चहुँ पास धाऊँ।
बृंदाबन आदि, ब्रज आदि, गोकुल आदि,
आदि बुन्यादि सब अहिर जारौं।
चल्यौ मग जात, कहि बात इतरात अति,
सूर-प्रभु सहित संघारि डारौं।।590।।