दसहुँ दिसा तैं बरत-दवानल, आवत हैं ब्रज-जन पर धायौ।
ज्वाला उठीं अकास बराबरि, घात आपनी सब करि पायौ।
बीरा लै आयौ सन्मुख ते, आदर करि नृप कंस पठायौ।
जारि करौं परलय छिन भीतर, ब्रज बपुरौ केतिक कहवायौ।
धरनि अकास भयौ परिपूरन नैकु नहीं कछु संधि बचायौ।
सूर स्याम बलरामहिं मारन, गर्ब-सहित आतुर ह्वै आयौ।।591।।