उत्तम सफल एकादसि आई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल
वरुण से नंद को छुड़ाना


उत्तम सफल एकादसि आई। बिधिवत ब्रत कीन्हौ नँदराई।।
निराहर जलपान विवर्जित। पापनि रहित धर्म-फल-अर्जित।।
नारायन-हित ध्यान लगायौ। और नहीं कहुँ मन बिरमायौ।।
बासर ध्यापन करत सब बीत्यौ। निसि जागरन करन मन चीत्यौ‍।।
पाटंबर दिवि मंदिर छायौ। पुहुप-माल मंडली बनायौ।।
देव महल चंदनहि लिपायौ। चौक देइ बैठ की बनायौ।।
सालिग्राम तहाँ बैठायौ। धूप-दीप नैवेद्य चढ़ायौ।।
आरति करि तब माथ नवायौ। ध्यान सहित मन बुद्धि उपायौ।।
आदर सहित करी नंद-पूजा। तुम तजि और न जानौं दूजा।।
तृतिय पहर जब रैनि गँवाई। नंद महरि सौं कही बुलाई।।
दंड एक द्वादसो सकारै। पारन की विधि करौ सबारै।।
यह कहि नंद गए जमुना-तट। लै धोती भारी बिधि-कर्मट।।
भारि भरि जमुना-जल लीन्हौ। बाहिर जाइ देह-कृत कीन्हौ।।
लै माटी कर चरन पखारी। उत्तम बिधि सौं करी मुखारी।।
अँचवत लै पैठे नंद पानी। जल बाजत दूतनि तब जानी।।
नंद बाँधि लै गए पतालहिं। बरुन पास ल्याए ततकालहि।।
जान्यौ बरुन कृष्न के तातहिं। मनहीं मन हरषित इहि बातहि।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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