आजु जौ हरिहि न सस्त्र गहाऊँ।
तौ लाजौ गंगा जननी कौं सांतनु-सुत न कहाऊँ
स्यंदन खंडि महारथि खंडौ कपिधज सहित गिराऊँ।
पांडव-दल सन्मुख ह्वै धाऊँ, सरिता-रुधिर बहाऊँ।
इती न करौं सपथ तौ हरि की, छत्रिय-गतिहिं न पाऊँ।
सूरदास रनभूमि बिजय बिनु, जियत न पीठि दिखाऊँ।।270।।