आजु मैं गाइ चरावन जैहौं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली
गो-चारण


                                
आजु मैं गाइ चरावन जैहौं।
बृन्‍दाबन के भाँति-भाँति फल अपने कर मैं खैहौं।
ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखो अपनी भाँति।
तनक-तनक पग चलिहौ कैसें, आवत ह्वैहै रीति।
प्रात जात गैया लै चारन, घर आवत हैं साँझ।
तुम्‍हरौ कमल बदन कुम्हिलैहै, रेंगत धामहि माँझ।
तेरी सौं मोहिं धाम न लागत, भूख नहीं कछु नेक।
सूरदास प्रभु कह्यौ न मानत, परयौ आपनी टेक।।411।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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