छूटि गई ससि सीतलताई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ
चंद्रोपालंभ


छूटि गई ससि सीतलताई।
मनु मोहि जारि भसम कियौ चाहत, साजत सोइ कलक तनु काई।।
याही तै स्याम अकास देखियत, मनौ धूम रह्यौ लतटाई।
ता ऊपर दब देति किरनि उर, उडुगन कनी उचटि इत आई।।
राहु केतु दोउ जोरि एक करि, नीद समै जुरि आवहिं माई।
ग्रसै तै न पचि जात तापमय, कहत ‘सूर’ विरहिनि दुखदाई।। 3351।।

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