सूर तरौ, हरि के गुन गाइ -सूरदास

सूरसागर

द्वितीय स्कन्ध

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राग बिलाबल



हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करौ। हरि चरनाबिंद उर धरौ।
सुकदेव हरि-चरननि सिर नाइ। राजा सौं बौल्‍यौं या भाइ।
तुम कह्यौ सप्‍त दिवस मम आइ। कहौं हरि-कथा, सुनौ चितलाइ।
चिंता छाँड़ि, मजौ जदुराइ। सूर तरौ, हरि के गुन गाइ।।1।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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