दिन द्वारावति देखन आवत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग कल्यान



दिन द्वारावति देखन आवत।
नारदादि सनकादि महामुनि, तेउ अवलोकि प्रीति उपजावत।।
विद्रुम फटिक पची कंचन खचि, मनि मय मंदिर बने बनावत।
जितै तितै नर नारि मीन खग, सबहिनि के प्रतिबिंब दिखावत।।
जल थल रंग विचित्र बहुत बिधि, अवलोकत आनंद बढावत।
चितै रहे चित चकित चतुर चित, कौन सत्य कछु मरम न पावत।।
वन उपवन फल फूल सुभग सर, सुक सारिका हस पारावत।
चातक मोर चकोर बतक पिक, मनहु मदन चटसार पढ़ावत।।
धाम धाम संगीत सरस गति, बीना बेनु मृदग बजावत।
अति आनंद प्रेम पुलकित तन, जहाँ तहाँ जदुपति जस गावत।।
निसि दिन रहत विमान रूढ़ रुचि, सुर बनितानि संग सब आवत।
‘सूर’ स्याम क्रीड़त कौतूहल, अमरनि अपनौ भवन न भावत।। 4165।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः