रुकमिनि बूकति है गोपालहि।
कहौ बात अपने गोकुल की कितिक प्रीति ब्रजबालहिं।।
तब तुम गाइ चरावन जाते, उर धरते बनमालहिं।
कहा देखि रीझे राधा सौ, सुंदर नैन बिसालहिं।।
इतनी सुनत नैन भरि आए, प्रेम बिबस नँदलालहि।
'सूरदास' प्रभु रहे मीन ह्वै, घोप बात जनि चालहिं।। 4270।।