मैया री, मोहिं माखन भावै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी
प्रथम माखन-चोरी


                
मैया री, मोहिं माखन भावै।
जो मेवा पकवान कहति तू, मोहिं नहीं रुचि आवै।
ब्रज-जुवती इक पाछैं, ठाढ़ी, सुनत स्‍याम की बात।
मन-मन कहति कबहुँ अपनैं घर देखौं माखन खात।
बैठे जाइ मथनियाँ कैं ढिग, मैं तब रहौं छपानी।
सूरदास प्रभु अंतरजामी, ग्‍वालिनि मन की जानी।।264।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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