भक्त बछल हरि भक्त उधारन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल
रूक्मिणीपरीक्षा



भक्त बछल हरि भक्त उधारन। भक्त परीच्छा के हित कारन ।।
रुकमिनि सौ बोले या भाइ। हम जानी तुम्हरी चतुराइ ।।
राउ चँदेरी कौ सिसुपाल। जाकौ सेवत सब भूपाल ।।
तासौ तेरी भई सगाई। पै पाती क्यौ हमें पठाई ।।
जाति पाँति उन सम हम नाही। हम निरगुन सब गुन उन पाही ।।
उन सम नहिं हमरी ठकुराई। पुरुष भले तै नारि भलाई ।।
नि.किंचन जन मैं मम बास। नारि संग तै रहौ उदास ।।
जौ कहै मोहिं काहे तुम ल्याए। ताके उत्तर द्यौ समुझाए ।।
कुंडिनपुर बहु भूपति आए। तिनके हृदय गरब सौ छाए ।।
बरजोरी मैं तोहिं हरि ल्यायौ। उनके मन कौ गरब नसायौ ।।
यह सुनि रुकमिनि भई बिहाल। जानि परयौ नहिं हरि कौ ख्याल ।।
लै उसाँस नैननि जल ढारे। मुख तै बचन न कछू उचारे ।।
ताकी दसा देखि हरि जानी। इन मम भक्ति भलै पहिचानी ।।

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