राधे जू आज बरनौ बसंत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बसंत



राधे जू आज बरनौ बसंत।
मनहुँ मदनविनोद बिहरत, नागरीनबकंत।।
मिलत सनमुख पटल पाटल भरति मानहि जुही।
बेलि प्रथम-समाज-कारन, मेदिनी कच गही।।
केतकी कुंच-कलस-कंचन, गरे कंचुकि कसी।
मालती मदचलित लोचन, निरखि मुख मृदु हँसी।।
बिरह व्याकुल मेदिनी कुल, भई बदन बिकास।
पवन परिमल सहचरी, पिक गान हृदय हुलास।।
उत सखा चंपक चतुर अति, कुंद मनु तनमाल।
मधुप मनिमाला मनोहर, 'सूर' श्री गोपाल।।2844।।

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