हम भक्तनि के भक्त हमारे -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलावल
अर्जुन के प्रति भगवान के वचन




हम भक्‍तनि के भक्‍त हमारे।
सुनि अर्जुन परतिज्ञा मेरी, यह ब्रत टरत न टारे।
भक्‍तनि काज लाज जिय धरि कै, पाइ पियादे धाऊँ।
जहँ-जहँ भीर परै भक्तनि कौ तहँ-तहँ जाइ छुडाऊँ।
जो भक्तनि सौं बैर करत है, सो बैरी निज मेरौ।
देखि बिचारि भक्‍त-हित कारन, हाँकत हौं रथ तेरौ।
जीतैं जीति भक्त अपनैं के, हारैं हारि बिचारौं।
सूरदास सुनि भक्‍त-विरोधी, चक्र सुदरसन जारौं।।272।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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