भयौ भागवत जा परकार। कहौं, सुनौ सो अब चित धार।
सतजुग लाख बरस की आइ। त्रेता दस सहस्र कहि गाइ।
द्वापर सहस एक की भई। कलिजुग सत संबत रहि गई।
सोऊ कहन सुनन कौं रही। कलि-मरजाद जाइ नहिं कही।
तातैं हरि करि ब्यासऽवतार। करो संहिता वेद-विचार।
बहुरि पुरान अठारह किये। पै तउ सांति न आई हिये।
तब नारद तिनकैं ढिग आइ। चारि स्लोक कहे समुझाइ।
ये ब्रह्मा सौं कहे भगवान। ब्रह्मा मोसों कहे बखान।
सोई अब मैं तुमसौं भाखे। कहौ भागवत इन हिय राखे।
श्री भागवत सुनै जो कोइ। ताकौं हरि – पद –प्रापति होइ।
ऊँच नीच ब्योरौ न रहाइ। ताकी साखो मैं, नुनि भाइ।
जैसै लोहा कंचन होइ। ब्यास भई मेरी गति सोइ।
दासी-सुत तैं नारद भयो। दोष दासपन कौ मिटि गयौ।
ब्यासदेव तब करि हरि – ध्यान। कियौ भागवत कौ ब्याख्यान।
सुनै भागवत जो चित लाइ। सूर सो हरि भजि भव तरि जाइ।।230।।