हरि हरि सुमिरौ सब कोइ। सत्रु मित्र हरि गनत न दोइ।।
जो सुमिरै ताकी गति होइ। हरि हरि हरि सुमिरौ सब कोइ।।
बैर भाव सुमिरयौ सिसुपाल। ताहि राजसू मैं गोपाल।।
चक्र सुदरसन करि सँहारयौ। तेज तासु निज मुख मैं धारयौ।।
भक्ति भाव भक्तनि उद्धारत। बैर भाव असुरनि निस्तारत।।
कोऊ सुमिरौ काहु प्रकार। 'सूरदास' हरि नाम उधार।। 4219 ।।