का‍म-बिवस ब्याकुल-उर-अंतर -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू
सूर्पणखा-नासिकोच्छेईदन


 
का‍म-विवस व्याकुल-उर-अंतर, राच्छसि एक तहाँ चलि आई।
हँस कहि कछू राम सीता-सौं, तिहिं लछिमन कैं निकट पठाई।
भृकुटी कुटिल, अरुन अति लोचन, अगिनि-सिखा-मुख कह्यौ फिराई।
री बौरी, सठ भई मदन-बस, मेरैं ध्यान चरन रघुराई।
बिरह-बिथा तन गई लाज छुटि, बारंबार उठै अकुलाई।
रघुपति कह्यौ निलज्ज निपट तू, नारि राक्षसी ह्यां तैं जाई।
सूरदास प्रभु इक पतिनीव्रत, काटी नाक गई खिसिआई॥56॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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