सुनि कहियौ अब न्हान चलौगी।
तब अपनी मन भायौ कीजौ, जब मोकौंं हरिसंंग मिलौगी।।
बहै बात मन मैं गहि राखी, मैं जानति कबहूँ बिसरौगी।
बड़ी वार मोकौ भई आऐ, न्हान चलति की बहुरि लरौगी।।
गहि-गहि बाहँ सवनि करि ठाढ़ी, कैसेहूँ घर तै निसरौगी।
‘सूर’ राधिका कहति सखिनि सौं, बहुरि आइ घरकाज करौंगी।।1750।।