जदुबंसी कुल उदित कियौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



जदुबसी कुल उदित कियौ।
कस मारि पुहुमी उद्धारी, सुरनि कियौ निर्भय जु हियौ।।
घर घर नगर अनंद बधाई, मनवाछित फल सबनि लह्यौ।
निगड़ तोरि मिलि मातु पिता कौ, हर्ष अनल करि दुखहिं दह्यौ।।
उग्रसेन मथुरा करि राजा, ऐसे प्रभु रच्छक जन कै।
कहुँ जनमे, कहुँ कियौ पान पय, राखि लेत भक्तनि पन कै।।
आपुन गए नद जहँ वासा, हलधर अग्रज सग लिऐं।
'सूर' मिले नँद हरषवंत ह्वै चलिहै व्रज अति हरष हिऐं।।3110।।

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