हा हा रे हठीले हरि जननी कौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार
गोपादि की बातचीत


हा हा रे हठीले हरि जननी कौ कह्यौ करि इंद्र गौ बरषि गरि अब गिरिवर धरि।।
सात द्यौस कीन्ही छाँह नैंकु न पिरानी बाबह अतिहीं कठिन कूट राख्यौ रे छतनि करि।।
सुनि कै जसोदा धाइ निकट गोपाल आइ करौ रे सबै सहाइ कहै नैन जल भरि।।
कुल के देव मनाए दीवे कौं द्विज बुलाए दियौ जाहि जोइ भाए आनँद उमंग भरि।।
भयौ इंद्र-कोप लोप कहत सबै सचोप जियौ रे कन्हैया प्यारौ जाकैं राज सुख करि।।
सूरदास प्रभु गिरिधर कौ कौतुक देखि काम धेनु आयौ लिये इंद्र अपडर डरि।।952।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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