श्रीधर बाँभन करम कसाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


श्रीधर-अंगभंग


श्रीधर बाँभन करम कसाई। कह्यौ कंस सौं बचन सुनाई।
प्रभु मैं तुम्हरौ आज्ञाकारी। नंद-प्तुवन कौ आवौं मारी।
कंस कह्यौ, तुमतैं यह होइ। तुरत जाहु, करौ बिलँब न कोइ।
श्रीधर नंद-भवन चलि आयौ। जसुदा उठि कै साथ नवायौ।
करौ रसोई मैं बलि जाऊँ। तुम्हरे हेतु जमुन-जल ल्याऊँ।
यह कहि जसुदा जमुना गई। श्रीधर कही भली यह भई।
उन अपनैं मन मारन ठान्यौ। हरि जू ताकौं तबहीं जान्यौ।
बाँभन मारैं नहीं भलाई। अंग याकौ मैं देऊँ नसाई।
जबहों बाँभन हरि ढिग आयौ। हाथ पकरि हरि ताहि गिरायौ।
गुदी चाँपि लै जीभ मरोरी। दधि ढरकायौ भाजन फोरी।
राख्यौ कछु तिहिं मुख लपटाइ। आपु रहे पलना पर आइ।
रोवन लागे कृष्न बिनानी। जसुमति आइ गई लै पानी।
रोवन देखि कह्यौ अकुलाई। कहा करयौ तैं बिप्र अन्याई।
बाँभन कैं मुख बात न आवै। जीभ होइ तौ कहि समुझावै।
बाँभन कौं घर बाहर कीन्हौ। गोद उठाइ कृष्न कौं लीन्हौ।
ब्रजबासी सब देखन आए। सूरदास हरि के गुन गाए।।57।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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