खेलत नंद-आँगन गोबिंद।
निरखि-निरखि जसुमति सुख पावति, बदन मनोहर इंदु।
कटि किंकिनी चंद्रिका मानिक, लटकत भाल।
परम सुदेस कंठ केहरि-नख, बिच बिच बज्र प्रवाल।
कर पहुँची, पाइनि मैं नूपुर, तन राजत पट पीत।
घुटुरुनि चलत, अजिर महँ बिहरत, मुख मंडित नवनीत।
सूर बिचित्र चरित्र स्याम के रसना कहत न आवैं।
बाल दसा अवलोकि सकल मुनि, जोग बिरति बिसरावैं।।97।।