नृपतिरजक अंबरनृप धोवत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली
रजक वध


नृपतिरजक अंबरनृप धोवत।
देखे स्याम राम दोउ आवत, गर्व सहित तिन जोवत।।
आपुस ही मैं कहत हँसत है, प्रभु हिरदै एइ सालत।
तनक तनक से ग्वाल छोहरनि, कंस अबहिं बधि घालत।।
तृनावर्त प्रभु आहि हमारौ, इनही मारयौ ताहिं।
बहुत अजगरी इहिं करि राखी, प्रथम मारिहैं याहि।।
जोकौ नाम स्याम सोइ खोटौ, तैसेइ है दोउ बीर।
'सूर' नद बिनु पुत्र कहाए, ऐसे जाए हीर।।3037।।

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