वै मुरली की टैर सुनावत।
बृंदाबन सब बासर बसि निसि-आगम जानि चल ब्रज आवत।
सुबल, सुदामा, श्रीदाम सँग, सखा मध्य मोहन छबि पावत।
सुरभी-गन सब लै आगैं करि कोउ टेरत कोउ बेनु ब्रजावत।
केकी-पच्छ–मुकुट सिर भ्राजत, गौरी राग मिलै सुर गावत।
सूर स्याम के ललित बदन पर, गोरज-छवि कछु चंद छपावत।।506।।