स्याम बलराम कौ सदा गाऊँ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मारू
प्रद्दुम्नविवाह


                                               
स्याम बलराम कौ सदा गाऊँ ।
यहै मम जप यहै तप यहै नेम व्रत प्रेम मम यहै फल यहै पाऊँ ।।
स्याम बलराम प्रद्युम्न के ब्याह हित, रुक्म के देस जबही सिधाए ।
कलिंग कौ राउ अरु रुक्म बलभद्र कौ, कपट करि सार पासा खिलाए ।।
दाउँ बलराम कौ देखि उन छल कियौ, रुक्म जित्यौ कहन लगे सारे ।
देव बानी भई जीति भई राम की, ताहु पर मूढ़ नाही सम्हारे ।।
कलिंग कौ राउ तब हँसी लाग्यौ करन, राम तब हृदै मैं क्रोध आन्यौ ।
रुक्म अरु कलिंग कौ राउ मारयौ प्रथम, बहरि तिनके बहु सुभट मारे ।
‘सूर’ प्रभु स्याम बलराम रनजीत भए, प्रद्युम्न ब्याहि निज पुर सिधारे ।। 4196 ।।

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