इहाँ कपिल सौ माता कह्यौ -सूरदास

सूरसागर

तृतीय स्कन्ध

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राग बिलावल
देवहूति-कपिल-संवाद



इहाँ कपिल सौ माता कह्यौ। प्रभु मेरौ अज्ञान तुम दह्यौ।
आतम ज्ञान देहु समुझाइ। जातें जनम मरन दुख जाइ।
कह्यौ कपिल, कहौं तुमसौं ज्ञान। मुक्त होइ नर ताकौं जान।
मुक्त नरनि के लच्छन कहौं। तेरे सब संदेहै दहौ।
मम सरूप जो सब घट जान। मगन रहै तजि उद्यम आन।
अरु सुख-दुख कछु मन नहिं ल्यावै। माता, सो नर मुक्त कहावै।
और जो मेरौ रूप न जानै। कुटुँब-हुत नित उद्यम ठानै।
बाकौ इहिं बिधि जन्म सिराइ। सो नर मरिकै नरकहिं जाइ।
ज्ञानी-संगति उपजै ज्ञान। अज्ञानी-सँग होइ अज्ञान।
तातैं साधु-संग नित करना। जातै मिटै जन्म अरु मरना।
थावर-जंगम मैं मोहिं जानै। दयासील, सब सौं हित मानै।
सत-सँतोष दृढ़ करै समाधि। माता ताकौं कहियै साघ।
काम, क्रोध, लोभहिं परिहरै। द्वंद-रहित, उद्यम नहिं करै।
ऐसे लच्छन हैं जिन माहिं। माता, तिनसौं साधु कहाहिं।
जाकौं काम-क्रोध नित ब्यापै। अरु पुनि लोभ सदा संतापै।
ताहि असाधु कहत सब लोइ। साधु-वेष धरि साधु न होइ।
संत सदा हरि के गुन गावैं। सुनि-सुनि लोग भक्ति कौं पावैं।
भक्ति पाइ पावैं हरि-लोक। तिन्हें न ब्यापै हर्षऽरू सोक।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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