सूर स्याम भक्तनि मन भाइ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलावल
विदुर-गृह भगवान-भोजन




हरि, हरि, हरि, सुमिरौ सब कोइ। ऊँच नीच हरि गनत न दोइ।
बिदुर-गेह हरि भोजन पाए। कौरव-पति कौं मन नहिं ल्‍याए।
कहौं सो कथा, सुनौ चित लाइ। सूर स्‍याम भक्तनि मन भाइ।।236।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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